Sunday, 9 July 2023

मुरादाबाद के साहित्यकार लाला शालिग्राम वैश्य ने सन 1865 में रचा था ऐतिहासिक नाटक पुरु विक्रम

भारतेन्दुयुगीन साहित्यकार लाला शालिग्राम वैश्य के ऐतिहासिक नाटक पुरुविक्रम से । यह नाटक सन् 1865 में  लिखा गया था । लाला जी की यह अंतिम रचना थी ।प्रस्तुत हैं 158 वर्ष पूर्व प्रकाशित इस दुर्लभ कृति का आवरण पृष्ठ और प्रस्तावना ।








डॉ मनोज रस्तोगी
संस्थापक
साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय
8, जीलाल स्ट्रीट
मुरादाबाद 244001
उत्तर प्रदेश, भारत
मोबाइल फोन नंबर 9456687822

मुरादाबाद से वर्ष 1970 में निकलती थी फिल्मी पत्रिका .... सिने पायल

मुरादाबाद से जहां वर्ष 1970 में हुल्लड़ मुरादाबादी के संपादन में हास्य व्यंग्य पत्रिका "हास – परिहास",  वर्ष 1973 में ललित भारद्वाज जी के संपादन में साहित्यिक पत्रिका "प्रभायन" का प्रकाशन हुआ वहीं 1970 में यहां गांधीनगर से एक फिल्मी पत्रिका "सिने पायल" का भी प्रकाशन हुआ । इसके संपादक थे अशोक कुमार निकुंज (वरिष्ठ साहित्यकार अशोक विश्नोई)। सह संपादक का पुष्प लता और व्यवस्थापक यशपाल सिंह थे। मुंबई प्रतिनिधि के बेसकर  अरुण, मशकूर चौधरी और प्रदीप थे। एक प्रति का मूल्य 50 पैसे था। इस पत्रिका में फिल्मी समाचार, आने वाली फिल्म की कहानी, फिल्मी ड्रामा, फिल्मी कलाकारों के जन्मदिन, कहानियां कविताएं और फिल्म #शूटिंग के दृश्यों के चित्र प्रकाशित होते थे। प्रस्तुत है इस पत्रिका के कुछ अंकों के आवरण पृष्ठ... ये अंक "साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय " को  आगरा निवासी साहित्यकार ए टी ज़ाकिर ने प्रदान किए हैं ।






✍️डॉ मनोज रस्तोगी

 संस्थापक 

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय 

8 जीलाल स्ट्रीट 

मुरादाबाद 244001 

उत्तर प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

Saturday, 8 July 2023

मुरादाबाद के धर्मात्मा सरन ने समाज सेवा को समर्पित कर दिया था संपूर्ण जीवन

आर्य समाज के दस नियमों में एक नियम है कि प्रत्येक को अपनी ही उन्नति में  संतुष्ट नहीं रहना चाहिए किंतु सब की उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिए । इस नियम को अपने जीवन में उतारा था महानगर के ऐसे व्यक्ति ने जिसे हम जनता सेवक समाज के संस्थापक  धर्मात्मा सरन के रूप में जानते हैं। जी हां, एक ऐसा कर्म योगी जिसने यथा नाम तथा गुण कहावत को चरितार्थ कर अपना संपूर्ण जीवन समाज की सेवा में समर्पित कर दिया था। उनके जीवन का एकमात्र मंत्र यही था ईशावास्यं इदं सर्वयत किश्च जगत्यां जगत। सब जगत ईश्वर है, यह जानकर सब से प्रेम करें। सब की सेवा करें ,यही परमात्मा की सेवा है। सदैव सत्य के लिए जिएं और जो भी कार्य करें सत्य के लिए ही करें । निर्भय होकर जो भी कार्य हम ईश्वर को साक्षी मानकर करते हैं वही ईश्वर भक्ति है। 

आर्थिक संघर्षों में बीता बचपन

सर्वधर्म समभाव के प्रबल पक्षधर और जनसेवा के धनी जिन्हें मुरादाबाद का गांधी कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी का जन्म 100 साल पहले आज के ही दिन पहली अक्टूबर 1919 को मुरादाबाद के मुहल्ला तंबोली में हुआ था। आपके पिता रघुनंदन प्रसाद मुनीम थे । बाल्यकाल में ही आप माता पिता की छत्रछाया से वंचित हो गए जिसकी पूर्ति उनकी दादी जय देवी ने की। बचपन से ही आर्थिक समस्याओं से उन्हें जूझना पड़ा और वे अपनी शिक्षा भी पूरी नहीं कर सके।

 

आजादी के आंदोलनों में भी लिया था हिस्सा

वर्ष 1930 में टाउन हॉल के मैदान में अंग्रेजो के खिलाफ एक जलसा हुआ था। पहली बार उन्होंने उस में भाग लिया। भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने  भागीदारी निभाई। कांग्रेस सेवा दल में भी वर्षों कार्य किया तथा सर्वोदय संस्था में भी सक्रिय भागीदारी निभाई  । इस दौरान उन्होंने महात्मा गांधी और आचार्य विनोवा भावे को अपने जीवन का आदर्श मान लिया था।वर्ष 1940 में आपके ऊपर गृहस्थ जीवन का भार पड़ा परंतु समाज सेवा के कार्यों में कोई कमी नहीं आने दी। वर्ष 1952 से 1954 तक आप  कांग्रेस कमेटी के सचिव पद पर भी रहे। उस समय कमेटी के अध्यक्ष भूतपूर्व सांसद हाफिज मुहम्मद सिद्दीक के पिता हाजी मुहम्मद इब्राहिम थे।

1957 में स्थापना की थी जनता सेवक समाज की

 स्वतंत्रता के आंदोलनों में हिस्सा लेने के दौरान ही उनके अंदर समाज सेवा की भावना जागृत हो गई। समाज सेवा के क्षेत्र में लाने का श्रेय वह पंडित जुगल किशोर शर्मा, हाजी मोहम्मद इब्राहिम, हरिकिशन दास टन्डन और वैद्य हरि प्रसाद शास्त्री को देते थे। उन्होंने जुलाई 1957 में जनता सेवक समाज की स्थापना की जिसका उद्देश्य था- सभी धर्मों के प्रति समानता का भाव रखना, बिना किसी भेदभाव के निष्काम सेवा करना, समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, स्वच्छता तथा सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष करना और आदर्श नागरिकता का प्रचार करना ।उसी वर्ष करुला  गांगन में भयंकर बाढ़ आई  तब उन्होंने अपने सहयोगियों के साथ उल्लेखनीय सेवा कार्य किया। नगर के गली मुहल्लों में स्वयं झाडू लगाकर सड़कों पर पड़े केले के छिलके उठाकर उन्होंने नागरिकों को स्वच्छता के प्रति जागरूक किया। धीरे-धीरे सेवा कार्य क्षेत्र को व्यापक बनाते गए। 

सभी धर्मों के त्योहारों पर करते थे कार्यक्रम

महानगर में चाहे हिंदुओं के पर्व हों या मुस्लिमों के, सिखों के त्योहार हों या फिर ईसाइयों के। सभी में समान रूप से हिस्सा लेकर उन्होंने समाज के समक्ष एक मिसाल कायम की। होली ईद क्रिसमस मिलन समारोह के साथ-साथ भगवान महावीर जयंती पर भी उन्होंने कार्यक्रम की शुरुआत की । विभिन्न जयन्तियों व धार्मिक पर्वों के अवसर पर राजकीय इंटर कॉलेज से प्रारंभ होने वाली शोभा यात्राओं का सौंफ इलायची और शीतल जल के साथ वाली गली के मोड़ पर जनता सेवक समाज के बैनर तले स्वागत किया जाना उल्लेखनीय है। इसी तरह विभिन्न धार्मिक अवसरों पर आयोजित होने वाले मेलों में सेवा शिविर लगाना भी उनके सामाजिक कार्यों में शामिल रहता था 

प्रभात फेरियां निकाल कर एकत्र करते थे पुराने कपड़े 

होली के अवसर पर कई दिन पूर्व पहले से ही उनका प्रभातफेरी निकाल कर टेसू के फूलों से होली खेलने, शराब पीकर हुड़दंग ना करने और पर्व को शांति व सद्भाव से मनाने का अनुरोध करना आज भी स्मरणीय है। इसी तरह दीपावली पर पटाखे छोड़ने का भी अनुरोध करते थे। यही नहीं प्रभातफेरी निकालकर गली मोहल्लों में घूमते हुए घरों से  पुराने कपड़े भी एकत्र करते थे और उन्हें मलिन बस्तियों में जाकर जरूरतमंदों को वितरित करते थे ।बाजी गिरान स्थित एक शराब की दुकान को हटाने के लिए हुए आंदोलन में उनकी भूमिका की लोग आज भी सराहना करते हैं। जनता सेवक समाज ही नहीं बल्कि हरिजन सेवक समाज नशाबंदी समिति अखिल भारतीय रचनात्मक समाज आर्य समाज आदि अनेक समाजसेवी संस्थाओं के माध्यम से भी उन्होंने सेवा कार्यो को अंजाम दिया।  

मुरादाबाद वाणी साप्ताहिक समाचार पत्र का किया था संपादन व प्रकाशन

धर्मात्मा सरन का योगदान समाज सेवा तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि पत्रकारिता क्षेत्र में भी रहा। वर्ष 1969 में जनवरी में उन्होंने मुरादाबाद वाणी का प्रकाशन व संपादन भी प्रारंभ किया जो समाज को रचनात्मक दिशा देने का आह्वान वर्ष 1984 तक करता रहा। बाद में आर्थिक कारणों से उन्हें इसका प्रकाशन बंद करना पड़ा आपके द्वारा किए गए सेवा कार्यों से प्रभावित होकर नगर के अनेक संगठनों ने उन्हें सम्मानित भी किया जिसमें वर्ष 1989 में साहु शिव शक्ति शरण कोठीवाल ट्रस्ट द्वारा किया गया नागरिक अभिनंदन उल्लेखनीय है। समाज को एक नई दिशा देने वाले हम सबके प्रेरणा स्रोत धर्मात्मा सरन का निधन 9 जुलाई 2008 को हो गया था। मृत्यु उपरांत भी वह अपने नेत्रों का दान कर समाज को एक संदेश दे गए । उनके सामाजिक योगदान के दृष्टिगत  नगर निगम द्वारा मंडी चौक चौराहे से पान दरीबा तक का मार्ग धर्मात्मा सरन मार्ग घोषित किया गया है।   मंडी चौक चौराहे पर लगा इसका शिलालेख नागरिकों को उनके आदर्शों पर चलने की प्रेरणा देता  है। वर्तमान में उनके पुत्र सुभाष गुप्ता, आनन्द गुप्ता पुत्रियां  मनोरमा गुप्ता - पूनम गुप्ता और पौत्र  सुमित गुप्ता जनता सेवक समाज के कार्यों को आगे बढ़ा रहे हैं।

::::: प्रस्तुति::::

डॉ मनोज रस्तोगी

8, जीलाल स्ट्रीट

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 अगर आपके पास भी श्री धर्मात्मा सरन जी के विषय में कोई अन्य महत्वपूर्ण जानकारी या दुर्लभ फोटो हो तो उसे अवश्य साझा कीजियेगा। 

















मुरादाबाद से ललित भारद्वाज के संपादन में प्रकाशित होती थी साहित्यिक पत्रिका प्रभायन

 वर्ष 1970 में हुल्लड़ मुरादाबादी ने मुरादाबाद से जहां अनूठी हास्य व्यंग्य पत्रिका "हास परिहास" का प्रकाशन शुरू किया वहीं वर्ष 1973 में मुरादाबाद के गांधी नगर से एक साहित्यिक पत्रिका "प्रभायन" हिंदी डाइजेस्ट का प्रकाशन भी शुरू हुआ, जिसके संपादक थे ललित भारद्वाज । संचालिका थीं डॉ गिरिजा देवी और निर्मला मोहन। उप संपादक ए टी ज़ाकिर थे । व्यवस्था सहकारी विनोद प्रकाश और ओम प्रकाश गुप्ता । एक कृति का मूल्य 1 ₹40 पैसे था, वार्षिक 12 ₹  (बाद में 14 ₹ ) आजीवन 101 ₹ था

       'प्रभायन' के प्रवेशांक में संपादकीय के अंतर्गत ललित भारद्वाज जी लिखते हैं ....

"आज जीवन की गति इतनी तेज हो गई है और समय इतना सूक्ष्म हो गया है कि 'संक्षेप' की प्रवृत्ति अधिकाधिक बढ़ती जा रही है। वर्तमान भी इतना महत्वपूर्ण और वेगशाली हो गया है कि वह अतीत की इतिहास- यात्रा एवं उपलब्धियों को जोरों से धकेलता हुआ पीछे छोड़ता चला जा रहा है। कहाँ जाकर रुकेगा, पता नहीं। इतना निश्चित है कि आज व्यक्ति को आस्था चाहिए और समष्टि को शक्ति। इसी ध्येय को लेकर 'प्रभायन' (हिन्दी डाइजेस्ट) का प्रकाशन हो रहा है। साहित्याकाश का विशद अनुशीलन करके 'प्रभायन' भोर की किरण पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास करेगा। नई मान्यताओं, नए मूल्यों, नई प्रवृत्तियों और नए सृजन का हम स्वागत करेंगे ही, किन्तु पुराने से भी हमें परहेज नहीं है।"

       पत्रिका के  प्रत्येक अंक में संस्कृति, विज्ञान, मनोविज्ञान, सेक्स, रहस्य-रोमांच, हास्य व्यंग्य, काव्य,  पुस्तक संक्षेप, फ़िल्म, तरुण-संगम, गृह लक्ष्मी,खेलकूद और मासिक भविष्य से परिपूर्ण सामग्री रहती थी। यही  नहीं प्रत्येक अंक में  किसी एक भारतीय भाषा  एवं एक विदेशी भाषा की कहानी का हिन्दी रूपांतर भी प्रकाशित होता था ।

        प्रभायन में स्थानीय साहित्यकारों के साथ-साथ यादवेंद्र शर्मा चंद्र, केदारनाथ मिश्र प्रभात, वृंदावन लाल वर्मा, श्री नारायण चतुर्वेदी, विशंभर मानव, जयंत प्रभाकर वेणु , उर्मिल कुमार थपियाल, आशा रानी, हरिमोहन, रमेश सत्यार्थी, अजामिल, निर्भय हाथरसी, इला चंद्र जोशी, उमाकांत मालवीय, अश्व घोष जैसे स्वनामधन्य साहित्यकारों की रचनाएं प्रकाशित होती थी ।

        प्रस्तुत हैं "साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय"  में  संरक्षित प्रभायन पत्रिका के कुछ अंकों के आवरण पृष्ठ ....











✍️डॉ मनोज रस्तोगी

संस्थापक

साहित्यिक मुरादाबाद शोधालय

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मुरादाबाद 244001

उत्तर  प्रदेश, भारत

मोबाइल फोन नंबर 9456687822

 




मुरादाबाद मंडल के जनपद बिजनौर के साहित्यकार अशोक मधुप का आलेख ....कभी बिजनौर की दुल्हन बनने वालीं थी वहीदा रहमान । यह आलेख प्रकाशित हुआ है बिजनौर से प्रकाशित चिंगारी सांध्य के 27 सितंबर के अंक में ।

  अभिनेत्री वहीदा रहमान को प्रतिष्ठित  दादा साहब फालके पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। ये घोषणा करते हुए केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने एक...